Future Job Alert

Future Job Alert

Sarkari Result | Sarkari Exam | Admit Card

FutureJobAlert.Com

राजस्थान में मृदा की समस्याएं

राजस्थान में मृदा: मृदा को अंग्रेजी में Soil कहते हैं जो  लेटिन भाषा के सोलम शब्द से बना है। जिसका अर्थ होता है- फर्श

  • मृदा के अध्ययन को पेडालॉजी कहा जाता है।
  • विश्व मृदा दिवस – 5 दिसम्बर को मनाया जाता है।
  • UNO ने वर्ष 2015 को मृदा वर्ष, वर्ष 2010 को जैव विविधता वर्ष घोषित किया है।
  • केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान- करनाल (हरियाणा) में स्थित है।
  • मरुस्थल वृक्षारोपण अनुसंधान संस्थान – जोधपुर में स्थित है जिसकी स्थापना – 1952 में हुई।
  • राज की प्रथम मृदा परीक्षण प्रयोगशाला – जोधपुर में स्थित है जिसकी स्थापना – 1958में हुई।

राजस्थान में मृदा की मुख्य समस्याएँ

राजस्थान में मृदा की समस्याओं को मुख्यतः 3 भागों में बांटा गया है-

1. मृदा अपरदन

मृदा अपरदन को “रेंगती हुई मृत्यु” कहा जाता है। मृदा अपरदन 2 प्रकार का होता है-

  1. चादरी मृदा अपरदन: बहते जल एवं वायु के द्वारा धरातल की ऊपरी सतह की मृदा का एक बारीक परत के रूप में उडकर या बहकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाना चादरी मृदा अपरदन कहलाता है।
  2. अवनालिका मृदा अपरदन: नलियों के रूप में मिट्टी का कटाव मृदा अवनालिका अपरदन कहलाता है। यह अपरदन केवल बहते जल से होता है। तथा यह मृदा अपरदन चादरी मृदा अपरदन से ज्यादा विनाशकारी है।
    → राज्य में सर्वाधिक अवनालिका मृदा अपरदन चम्बल नदी के मार्ग में हुआ है, जिसे बीहड़ / डांग कहा जाता है। जिससे भूमि उत्खाती होती है।
    → राज्य में सर्वाधिक बीहड़ भूमि क्रमश: धौलपुर, सवाईमाधोपुर, करौली जिले में है।

Note: करौली को डांग की रानी कहते हैं जबकि धौलपुर को डांग का राजा कहते हैं।

डांग क्षेत्र विकास कार्यक्रम

इसकी शुरुआत वर्ष 1994-95 में हुई।
यह राज्य के 8 जिलों ( कोटा, बूंदी, बांरा, सवाईमाधोपुर, झालावाड, भरतपुर, करौली, धोलपुर) में संचालित है।

मृदा अपरदन के कारक

(i) जल
(ii) वायु
(iii) वनो की कमी – वनो की जड़े मृदा को जकड़े रखती हैं। अत: जिन क्षेत्रों में वन कम है, वहा मृदा अपरदन अधिक होता है।
(iv) अति पशुचारण

  • सम्पूर्ण राजस्थान में सर्वाधिक मृदा अपरदन वायु से होता है।
  • पूर्वी. राजस्थान में सर्वाधिक मृदा अपरदन जल से होता है।
  • पश्चिमी राज में सर्वाधिक मृदा अपरदन वायु से होता है।

2. मृदा का अम्लीय व क्षारीय होना

मृदा का Ph मान 7 होता है।

जिस मृदा की Ph 7 से अधिक होती है उसे क्षारीय/ लवणीय/ नमकीन / रेड / कल्लड़ मृदा कहते हैं।

  • सर्वाधिक – क्रमश: बाड़मेर, जालौर में
  • उपचार- जिप्सम, कैल्शियम सल्फेट व पाइराइट डाला जाता है

जिस मृदा की Ph 7 से कम होती है उसे अम्लीय मृदा कहते हैं।

  • सर्वाधिक क्रमश : – पाली, गंगानगर में
  • उपचार हेतु – रॉक फास्फेट, चूना व जस्ते का चूर्ण डाला जाता है।

3. सेम की समस्या (जलाधिक्य की समस्या)

IGNP के सहारे – सहारे जल के रिसाव से बनी दलदली समस्या को सेम कहा जाता है।

सर्वाधिक सेम की समस्या क्रमश:

  1. हनुमानगढ़ (बडोपोल गांव प्रसिद्ध)
  2. श्रीगंगानगर

सर्वाधिक सेम की समस्या IstB कृषि जलवायुखण्ड में है। इसे उत्तर पश्चिमी सिंचित जलवायु खण्ड कहा जाता है।

राज्य में लगभग 3.5 लाख हेक्टेयर भूमि सेम की समस्या से ग्रसित है।

सेम की समस्या का निदान

  • यूकेलिप्टस / सफेदा उगाकर (इसे पर्यावरण का शत्रु भी कहते हैं)
  • IGNP के सहारे – सहारे वृक्षारोपण करके

FAQ

राजस्थान में सेम की समस्या किस जिले में है?

सर्वाधिक सेम की समस्या क्रमश: हनुमानगढ़ (बडोपोल गांव प्रसिद्ध), श्रीगंगानगर जिलों में है।

राजस्थान में मृदा अपरदन के क्या कारण हैं?

(i) जल
(ii) वायु
(iii) वनो की कमी
(iv) अति पशुचारण

सेम समस्या का समाधान कैसे किया गया?

यूकेलिप्टस / सफेदा उगाकर (इसे पर्यावरण का शत्रु भी कहते हैं)
IGNP के सहारे – सहारे वृक्षारोपण करके

मृदा अपरदन को रोकने के क्या उपाय हैं?

पेड़-पौधे लगाना (Afforestation): वृक्षारोपण से मिट्टी बंधी रहती है और वर्षा का पानी धीरे-धीरे रिसता है।
घास और झाड़ियों की खेती: खेतों की मेड़ों पर घास/झाड़ियाँ लगाने से मिट्टी का बहाव रुकता है।
फसल चक्र (Crop Rotation): भूमि की उर्वरता और संरचना बनाए रखने में सहायक।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top